ब्रिटिश भारत का प्रशानिक ढांचा और नीतिया (1757-1857 ई.)

ब्रिटिश भारत का प्रशानिक ढांचा और नीतिया (1757-1857 ई.)

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धार्मिक आंदोलन महाजनपद काल एवं भारत का शुरुआती राजवंश

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना का मार्ग 1757 र्इ. में क्लाइव के नेतृत्व में लड़े गये प्लासी के युद्ध के बाद से ही खुल गया था। इस युद्ध ने र्इस्ट इण्डिया कंपनी को बंगाल का स्वामी बना दिया तथा वह राजनैतिक शक्ति के रूप में स्थापित हो गर्इ। 1764 र्इ. में बक्सर के युद्ध में मिली विजय से कंपनी का भारत की तीन प्रमुख शक्तियों- मुगल बादशाह शाहआलम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला और बंगाल के नवाब मीर कासिम पर दबदबा स्थापित हो गया। इस युद्ध में मल्हारराव होलकर भी अंग्रेजों से परास्त हो गया। इससे र्इस्ट इंडिया कंपनी एक अखिल भारतीय शक्ति बन गर्इ। क्लाइव की सफलताएं इतनी जबर्दस्त थी कि 1765 र्इ. में उसे दुबारा बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया गया। क्लाइव ने –ढ़ संकल्प शक्ति से दु:साहस पूर्ण कार्य किये जिनसे भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हो सका। 1772 र्इ. में वारेन हेस्टिंग्ज बंगाल का गवर्नर नियुक्त हुआ। उसने क्लाइव के काम को तेजी से आगे बढ़ाया। उसने मुगल बादशाह की 26 लाख रुपये की वार्षिक पेंशन बंद कर दी और बंगाल के नवाब की 53 लाख रुपये की वार्षिक पेंशन घटाकर 16 लाख रुपये कर दी। उसने 1772 र्इ. में बंगाल से द्वैध शासन प्रणाली को समाप्त किया। 1773 र्इ. में ब्रिटिश संसद ने रेगुलेटिंग एक्ट पारित किया तथा बंगाल में गवर्नर के स्थान पर गवर्नर जनरल की नियुक्ति की जाने लगी। हेस्टिंग्ज के समय में मराठों के विरुद्ध कर्इ सैनिक कार्यवाहियां की गर्इ किंतु र्इस्ट इंडिया कंपनी को कर्इ बार मराठों से अपमानजनक शतोर्ं पर संधि करनी पड़ी।

 

महत्वपूर्ण अवधारणायें एवं तथ्य

पृष्ठभूमि

1757 र्इ. की प्लासी की लड़ार्इ और 1764 र्इ. में बक्सर के युद्ध को अंग्रेजों द्वारा जीत लिए जाने के बाद बंगाल पर ब्रिटिश र्इस्ट . इंडिया कंपनी ने शासन का शिकंजा कसा। इसी शासन को अपने अनुकूल बनाए रखने के लिए अंग्रेजों ने समय-समय पर कर्इ एक्ट पारित किए, जो भारतीय संविधान के विकास की सीढ़ियां बनीं। ये अधिनियम इस प्रकार थे

§  1773 र्इ. का रेग्यूलेटिंग एक्ट - इस एक्ट के अन्तर्गत कलकत्ता प्रेसिडेंसी में एक ऐसी सरकार स्थापित की गर्इ, जिसमें गवर्नर जनरल और उसकी परिषद के चार सदस्य थे, जो अपनी सत्ता का उपयोग संयुक्त रूप से करते थे। इसकी मुख्य बातें इस प्रकार हैं

§  कंपनी के शासन पर संसदीय नियंत्रण स्थापित किया गया।

§  बंगाल के गवर्नर को तीनों प्रेसिडेंसियों का जनरल नियुक्त किया गया।

§  कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गर्इ। जिसके प्रथम मुख्य न्यायधीश सर एलियाज इम्पी थे तथा 3 अन्य

न्यायधीश चौम्बर्ज लिमिस्टर्क और हाइड थे।

§  1784 र्इ. का पिट्स इंडिया एक्ट - इस एक्ट के द्वारा दोहरे प्रशासन का प्रारंभ हुआ•

§  कोर्ट अॉफ डायरेक्टर्स - व्यापारिक मामलों के लिए। 

§  बोर्ड अॉफ कंट्रोलर - राजनैतिक मामलों के लिए।

§  1793 र्इ. का चार्टर अधिनियम - इसके द्वारा नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों तथा कर्मचारियों के वेतन आदि को भारतीय राजस्व में से देने की व्यवस्था की गर्इ।

§  1813 र्इ. का चार्टर अधिनियम -

§  कंपनी के अधिकार-पत्र को 20 सालों के लिए बढ़ा दिया गया।

§  कंपनी के भारत के साथ व्यापार करने के एकाधिकार को छीन लिया गया। लेकिन उसे चीन के साथ व्यापार और पूर्वी देशों के साथ चाय के व्यापार के संबंध में 20 सालों के लिए एकाधिकार प्राप्त रहा।

§  कुछ सीमाओं के अधीन सभी ब्रिटिश नागरिकों के लिए भारत के साथ व्यापार के लिए खोल दिया गया।

§  1833 र्इ. का चार्टर अधिनियम -

§  इसके द्वारा कंपनी के व्यापारिक अधिकार पूर्णत: समाप्त कर दिए गए।

§  अब कंपनी का कार्य ब्रिटिश सरकार की ओर से मात्र भारत का शासन करना रह गया।

§  बंगाल के गवर्नर जरनल को भारत का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा।

§  भारतीय कानूनों का वर्गीकरण किया गया तथा इस कार्य

के लिए विधि आयोग की नियुक्ति की व्यवस्था की गर्इ।

§  1853 र्इ. का चार्टर अधिनियम- इस अधिनियम के द्वारा सेवाओं में नामजदगी का सिद्धांत समाप्त कर कंपनी के महत्वपूर्ण पदों को प्रतियोगी परीक्षाओं के आधार पर भरने की व्यवस्था की गर्इ।

 


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