भारत में अंग्रेजों की आर्थिक एवं भू-राजस्व नीतियां

भारत में अंग्रेजों की आर्थिक एवं भू-राजस्व नीतियां

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भारत में अंग्रेजों की आर्थिक एवं भू -राजस्व नीतियां

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

र्इस्ट इंडिया कंपनी ने अपने आर्थिक व्यय की पूर्ति करने तथा अधिकाधिक धन कमाने के उद्देश्य से भारत की कृषि व्यवस्था में हस्तक्षेप करना प्रारंभ कर दिया तथा कृषि के परम्परागत ढांचे को समाप्त करने का प्रयास किया। यद्यपि क्लाइव तथा उसके उत्तराधिकारियों के समय तक भू-राजस्व पद्धति में कोर्इ बड़ा परिवर्तन नहीं किया गया तथा इस समय तक भू-राजस्व की वसूली बिचौलियों (जमीदारों या लगान के ठेकेदारों) के माध्यम से ही की जाती रही, किंतु उसके पश्चात् कंपनी द्वारा नये प्रकार के कृषि संबंधों की शुरुआत की गयी। इसके परिणामस्वरूप कंपनी ने करों के निर्धारण और वसूली के लिये कर्इ नये प्रकार के भू-राजस्व बंदोबस्त कायम किये। मुख्य रूप से अंग्रेजों ने भारत में तीन प्रकार की भू-पद्धतियां अपनायीं -

1. जमींदारी                 2. रैयतवाड़ी               3. महालवाड़ी।

इन पद्धतियों का अध्ययन हम इस अध्याय में करने वाले हैं।

 

भूमिका

र्इस्ट इंडिया कंपनी ने अपने आर्थिक व्यय की पूर्ति करने तथा अधिकाधिक धन कमाने के उद्देश्य से भारत की कृषि व्यवस्था में हस्तक्षेप करना प्रारम्भ किया था। कंपनी ने करों के उत्पादन और वसूली के लिए कर्इ नए प्रकार के भू-राजस्व बंदोबस्त प्रारम्भ किए। मुख्य रूप से अंग्रेजो ने भारत में निम्न प्रकार की भू-राजस्व पद्धतियां अपनार्इ

(i) जमींदारी    (ii) रैयतवाड़ी   (iii) महालवाड़ी

 

ब्रिटिश कालीन भू-राजस्व व्यवस्था- (एक –ष्टि में)

 

 

स्थायी बंदोबस्त

रैय्यतवाड़ी

महालवाड़ी

1

संस्थापक

कार्नवालिस

वर्ष (1793)

टामस मुनरो एवं रीड वर्ष (1820)

होल्ट मैकेंजी वर्ष (1822)

2

 

बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, बनारस, उत्तरी कर्नाटक

बंबर्इ, मद्रास, असम, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रांत, पंजाब

मार्टिन वर्ड

3

भू-भाग का प्रतिशत

समस्त अंग्रेजी भारत का 19%

समस्त अंग्रेजी भूमि का 51%

समस्त भूमि का 30%

4

भूमि मालिक

भूमि अधिग्रहणससदैव के लिए जमींदार का

भूमि का मालिक किसान

भूमि पर गांव का अधिकार

5

राजस्व की जिम्मे

-दारी

ब्रिटिश सरकार को राजस्व देने की जिम्मेदारी जमींदार की

ब्रिटिश सरकार को राजस्व देने की जिम्मेदारी किसान की

ब्रिटिश सरकार को राजस्व देने की जिम्मेदारी समस्त गांव/ गांवो के मुखियाओं की

6

कर की दर

कर की दर 33% से 55% तक

कर की दर 50%

कर की दर 60% तक

 

कृषि का व्यावसायीकरण

एडम स्मिथ के अनुसार व्यावसायीकरण उत्पादन को प्रोत्साहन देता है तथा इसके परिणामस्वरूप समाज में समृद्धि आती है, किंतु

औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत लाये गए व्यावसायीकरण ने जहां ब्रिटेन को समृद्ध बनाया, वहीं भारतं में गरीबी बढ़ी। कृषि के क्षेत्र में व्यावसायिक संबंधों तथा मौद्रिक अर्थव्यवस्था संबंध तथा कृषि को मौद्रीकरण कोर्इ नर्इ घटना नहीं थी, क्योंकि मुगलकाल में भी कृषि अर्थव्यवस्था में ये कारक विद्यमान थे। राज्य तथा जागीरदार दोनों के द्वारा राजस्व की वसूल में अनाजों के बदले नगद वसूली पर बल दिए जाने को इसके कारण के रूप में देखा जाता है। यह बात अलग है ब्रिटिश शासन में प्रक्रिया को और भी बढ़ावा मिला। रेलवे का विकास तथा भारतीय अर्थव्यवस्था का विश्व अर्थव्यवस्था से जुड़ जाना भी इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कारक सिद्ध हुआ।

धन का बहिर्गमन : राष्ट्रवादी विचारधारा

‘धन-निकासी सिद्धांत’ के तहत आर्थिक निकासी उस समय होता है, जब किसी देश के प्रतिकूल व्यापार संतुलन के फलस्वरूप सोने चांदी का बर्हिगमन होता है। ‘धन की निकासी’ के सिद्धांत को सर्वप्रथम 1867 र्इ. में लंदन में हुर्इ ‘र्इस्ट इंडिया एसोसिएशन’ की एक बैठक में ‘दादा भार्इ नौरोजी’ द्वारा उठाया गया। अपने निबंध में उन्होंने इस मुद्दे को उठाया। उन्होंने कहा- भारत में अपने शासन की कीमत के रूप में ब्रिटेन, इस देश की सपंदा को छीन रहा है। भारत में वसूल किये गए कुल राजस्व का लगभग चौथार्इ भाग देश के बाहर चला जाता है तथा इंग्लैंड के संसाधनों में जुड़ जाता है। 1896 र्इ. में ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ ने कलकत्ता अधिवेशन में औपचारिक रूप से इसे स्वीकृत करते हुए कहा कि वषोर्ं से निरंतर देश से हो रही संपत्ति की निकासी देश में अकालों के लिए और देशवासियों की गरीबी के लिए जिम्मेदार है।


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