वंशागति का आण्विक आधार एवं जैव तकनीकी

वंशागति का आण्विक आधार एवं जैव तकनीकी

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वंशागति का आणविक आधार एवं जैव तकनिकी

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

सजीवों की कोशिकाओं (प्रोकेरियोटिक एवं युकेरियोटिक) में उपस्थित दो प्रकार के न्यूक्लिक अम्ल- DNA RNA होते हैं जिसमें DNA अधिकांशत: जीवों का आनुवांशिक पदार्थ होता है। जबकि पादप विषाणुओं में DNA आनुवांशिक पदार्थ के रूप में मिलता है। ये सभी सजीवों में आनुवांशिक संगठन का संयमन और नियंत्रण करते हुए तथा प्रोटीन संश्लेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन्ही आनुवांशिक पदाथोर्ं का व्यापक उपयोग जैवप्रौद्यागिकी में होता है। जैवप्रौद्यागिकी को जीवित प्राणियों एवं उनकी जैविक प्रक्रियाओं के औद्योगिक उपयोगों के रूप में परिभाषित किया गया है, जैसे जैवरसायन, सूक्ष्मजैविकी, आनुवंशिक अभियांत्रिकी आदि जिन्हें सूक्ष्मजीवों की सहायता से मानव कल्याण में उपयोग किया जा सकता है। जैवप्रौद्योगिकी का उपयोग कर्इ क्षेत्रों में जैसे - खाद्य उत्पादन औषधि उत्पादन, नये परीक्षण उपकरणों के विकास में, आनुवंशिक उपचार, DNA फिंगरप्रिंटिंग एवं फारेन्सिक उद्देश्य के लिए किया जाता है।

 

न्यूक्लिक अम्ल न्यूक्लियोटाइड्स का एक लंबा बहुलक है। DNA आनुवंशिक सूचनाओं को संग्रहित करने जबकि DNA मुख्यत: सूचनाओं के स्थानांतरण अभिव्यक्ति में सहायता करते हैं। DNA RNA दो आनुवंशिक पदार्थ के रूप में कार्य करते है, लेकिन DNA रासायनिक संरचनात्मक अधिक स्थिर होने से उपयुक्त आनुवंशिक पदार्थ है। फिर भी RNA सबसे पहले विकसित हुआ जबकि DNA RNA से प्राप्त किया गया। DNA के द्वि श्रृंखला कुंडलित (Double Chain Coiled) संरचना की विशिष्टता उसके विपरीत स्ट्रेण्ड के बीच उपस्थित हाइड्रोजन बंध है। नियमानुसार एडेनिन थाइमिन से दो हाइड्रोजन बन्धों द्वारा जुड़ा होता है जबकि ग्वानिन साइटोसीन तीन हाइड्रोजन बंध द्वारा जुड़े होते हैं। इससे एक स्ट्रेण्ड दूसरे स्ट्रेण्ड का पूरक होता हैं DNA की प्रतिकृति सेमीकंजरवेटिव प्रकार से होती है जबकि यह प्रक्रम पूरक हाइड्रोजन बंध द्वारा निर्देशित होता है। साध रण रूप से कहे तो DNA का यह खंड जो DNA का कूटलेखन (Coding) करता है उसे जीन कहते हैं।

अनुलेखन (Trancription) के दौरान DNA का एक स्ट्रेण्ड टेम्पलेट के रूप में कार्य करता है जो पूरक RNA के संश्लेषण में mRNA को सक्रिय करता हुआ स्थानांतरित हो जाता है। जीवाणुओं में RNA ट्रांसक्रिप्टेड mRNA क्रियात्मक होता है अत: वह सीधे ही ट्रांसलेटेड हो जाता है। यूकेरियोटस में जीन विखंडित होते हैं। कोडिंग सीक्वेंस - एक्सॉन, नॉन कोडिंग सीक्वेंस-इंट्रोन्स द्वारा बाधित होते हैं। इंट्रान को अलग करके एवं एक्जान को स्पलाइसिंग द्वारा आपस में जोड़कर सक्रिय DNA का निर्माण करते हैं। mRNA में मिलने वाले क्षार अनुक्रमों को तीन के समूहों में पढ़ते हैं (ट्रिप्लेट आनुवंशिक कोड बनाने के लिए) जो एक एमीनो अम्ल की कोडिंग करते हैं। t-RNA द्वारा आनुवंशिक कोड को पूरकता के सिद्धांत पर पढ़ा जाता है, जो एक अनुकूलक अणु के रूप में कार्य करता है। प्रत्येक एमीनो अम्ल के लिए विशिष्ट t-RNA  होते हैं। t-RNA विशिष्ट एमीनो अम्ल को अपने एक किनारे से जोड़ता है एवं mRNA पर स्थित कोड से अपने एंटीकोडान के बीच हाइड्रोजन बंध बनाकर युग्मित (Paired) होता है। ट्रांसलेशन साइट (प्रोटीन संश्लेषण) राइबोसोम है, जो mRNA से जुड़कर एमीनो अम्लों को जोड़ने के लिए पेप्टाइड बां बनाने के लिए उत्प्रेरक का काम करता है जो एक RNA एंजाइम (राइबोजाइम) का उदाहरण है। ट्रांसलेशन एक प्रक्रम है जिसका विकास त्छ। के आसपास हुआ है, जो इस बात का सूचक है कि जीवन का विकास RNA से हुआ है। ट्रांसक्रिप्शन का नियमन (Regulation) जीन की अभिव्यक्ति के नियमन का प्रथम चरण है। जीवाणु में एक से

 

अधिक जीन आपस में इस तरह से व्यवस्थित होते हैं कि वे एक र्इकार्इ के रूप में नियमित होते हैं जिसे प्रचालेक (Operons) कहते हैं। लैक-ओपेरान जीवाणु में प्रोटोटाइप का ओपेरान हैं, जो लैक्टोज के उपापचय के लिए जीन के कोड्स के लिए उत्तरदायी हैं। ओपेरान का नियमन संवर्धन में उपस्थित लैक्टोज की मात्रा पर निर्भर है, जहां जीवाणु की वृद्धि होती है। इस कारण से इस प्रकार के नियमन को क्रियाधार के द्वारा एंजाइम संश्लेषण के नियमन के रूप में देख सकते हैं।

मानव जीनोम परियोजना एक वृहद् योजना थी जिसका उद्देश्य मानव जीनोम में स्थित सभी क्षारों का सिक्वेंसिंग करना था। इस प्रोजेक्ट से बहुत नयी जानकारियां प्राप्त हुर्इ। इस प्रोजेक्ट के परिणामस्वरूप कर्इ नए क्षेत्रों अवसरों के रास्ते खुले। DNA अंगुलिछापन (fingerprinting) एक तकनीक है जिसमें DNA के स्तर पर जनसंख्या में स्थित विभिन्न लोगों के बीच विभिन्नता के बारे में पता लगाते हैं। यह DNA सिक्वेंस में बहुरूपता के सिद्धांत पर कार्य  करता है। इसका फॉरेंसिक विज्ञान, आनुवंशिक विविधता विकासीय जीवविज्ञान के क्षेत्र में अत्यधिक उपयोग हैं।

जैवप्रौद्योगिकी (Biotechnology) जीवधारियों, कोशिकाओं एंजाइमों का प्रयोग करते हुए उत्पादों प्रक्रमों का व्यापक स्तर पर उत्पादन एवं मार्केटिंग करने से संबंधित है। आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी जेनेटिकली रूपांतरित जीवों का उपयोग तभी संभव हो पाया जब मनुष्य ने DNA के रसायन को परिवर्तित पुनर्योगज (Recombinant) DNA का निर्माण करना सीखा। इस प्रमुख प्रक्रिया को रिकॉम्बीनेन्ट DNA टेक्नोलॉजी या आनुवंशिक इंजीनियरिंग कहते हैं। इस प्रक्रम में प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज, क्छ। लाइगेज, समुचित प्लाज्मिड या विषाणु संवाहक (Vector) को DNA के पृथक करने परपोषी (host) जीवों में विजातीय DNA का स्थानांतरण, बाहरी जीन की अभिव्यक्ति, जीन उत्पाद अर्थात् सक्रिय प्रोटीन का शोधन और अंत में मार्केटिंग के लिए उपयुक्त संरूपण बनाना शामिल है। व्यापक स्तर पर उत्पादन में बायोरिएक्टर का उपयोग होता है। सूक्ष्मजीवों, पौधों, जंतुओं अनेक उपापचयी कार्यप्रणाली का उपयोग करते जैव प्रौद्योगिकी द्वारा मनुष्य के लिए कर्इ उपयोगी पदाथोर्ं का निर्माण हो चुका है। रिकॉम्बीनेन्ट DNA टेक्नोलॉजी ने ऐसे सूक्ष्मजीवों, पौधों जंतुओं का निर्माण संभव कर दिया है जिनमें अभूतपूर्व क्षमता निहित है। जेनेटिकली रूपांतरित जीवों का निर्माण एक या एक से अधिक जीन का, एक जीव से दूसरे जीव में स्थानांतरण की प्राकृतिक विधि के अतिरिक्त रिकॉम्बीनेन्ट DNA टेक्नोलॉजी का उपयोग करते हुए किया गया है।

 


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